समाज का ऋण चुकाइए

हम क्यों पैदा हुए हैं, इसका उत्तर शायद हम न दे सकें, किन्तु जब पैदा हो गए हैं, तो हमें जीवन में क्या करना चाहिए, इस प्रश्न पर अब आसानी से सोचा जा सकता है। जब हम इस समाज के सदस्य हैं, तो हमें अपनी सदस्यता का चंदा देना चाहिए, जो हमारा अनिवार्य कत्र्तव्य है। समाज को यह चंदा केवल धन के रूप में नहीं दिया जा सकता। इस चंदे के रूप में तो हमें अपनी प्रतिभा, परिश्रम और त्याग के बल पर समाज को ऐसी चीज देनी चाहिए जिससे समस्त समाज का जीवन भविष्य में सुखमय और उन्नतिशील बन सके।

अपने समस्त जीवन के कार्यकलापों का सिंहावलोकन करके यदि हमे यह अनुभव होता है कि हमारे जीवन से समाज को कोई हानि नहीं हुई, लाभ ही हुआ है, तो हमारा जीवन सार्थक है। यदि किसी की मृत्यु पर लोग संतोष की साँस लेने के बजाए, एक ठंडी आह भर कर कहें कि एक भला आदमी चला गया, तो समझना चाहिए कि वह अपना कत्र्तव्य पूरा करके गया है। कौन कितना करता है, यह साधनों, सामथ्र्य और परिस्थितियों पर निर्भर है। अपने साधनों और सामथ्र्य के अनुसार किसी रूप में समाज की सेवा करके आप भी अपने  समाज के ऋण से उऋण हो लीजिए, ताकि अंत समय में आप यह संतोष प्राप्त कर सकें कि आपने अपना कत्र्तव्य पूरा कर लिया है।