जीवन की उपयोगिता केवल नैतिक मूल्यांकन द्वारा ही निर्धारित की जा सकती है। एक बार निश्चय कर लीजिए कि जब आपकी अंतरात्मा किसी कार्य को उचित बतलाए, तो अनिश्चित और अकर्मण्य नहीं रह जाएँगे, बल्कि उस पर अग्रसर होंगे। समझ लीजिए कि एक मानव को दैवी-वरदान की जितनी आशा हो सकती है, उसकी कुंजी उसे प्राप्त हो गई है।
अपने कत्र्तव्य से बच निकल कर या उसकी अवहेलना करके आप अपने सुख की वृद्धि नहीं कर सकते। बुद्धिमान और सज्जन भीरुताजनित भयों से नहीं डरते और जिस ओर उनका कत्र्तव्य संकेत करता है, विश्वासपूर्वक बढ़ते चले जाते हैं। कत्र्तव्य के आह्वïान पर परमात्मा में विश्वास रखते हुए वे हजारों खतरों का मुकाबला करते हैं और उन पर विजय पाते हैं।
सच्ची सफलता के लिए केवल एक वस्तु की आवश्यकता है। धन की नहीं, शक्ति की नहीं, कुशलता की नहीं, ख्याति की नहीं, स्वतंत्रता की नहीं, स्वास्थ्य की भी नहीं, अपितु एकमात्र चरित्र की, पूर्ण अनुशासित इच्छाशक्ति की। केवल वही हमारी सच्ची सहायता कर सकती है और यदि हम इस अर्थ में सफल नहीं हो सके हैं, तो हमारा जीवन निष्फल रहा। हमें ऐसा कार्य कदापि न करना चाहिए, जिससे हमें लज्जा आए। अपने जीवन-निर्माण के हेतु सदा ऊपर की ओर देखो, नीचे को नहीं। जो ऊपर उठना नहीं चाहता, वह नीचे की ओर खिसकता है। जो आत्मा उडऩे की हिम्मत नहीं करती, रसातल में गिरती है।