छोटे-छोटे बंधनों को पार करता हुआ ही मनुष्य बड़े बंधनों को पार कर सकता है। उन्नति के लिए मनुष्य ज्ञान और कर्म को इस प्रकार काम में लाए, जिससे लोक के छोटे-मोटे बंधन बराबर शिथिल होते रहें। ऐसा होने पर ही लोकोन्नति, परलोकोन्नति का साधन बना करती है और मनुष्य इन छोटे-छोटे बंधनों को दूर करते हुए इस योग्य हो जाता है कि बड़े-से बड़े मौत के बंधन को भी दूर कर सके और ऐसा हो जाने पर वह अपने परलोक को भी उन्नत बना लिया करता है।
यहाँ एक बात और समझ लेनी चाहिए कि मोक्ष अथवा ईश्वर प्राप्ति मनुष्य को दो बातें प्राप्त कराया करती है। १. मौत के बंधन से छुटकारा और २. आनंद। इनमें से पहली बात निर्गुण और दूसरी बात सगुण उपासना का फल हुआ करती है। जब मनुष्य ईश्वर के निर्गुणता-प्रदर्शक गुणों का चिंतन करता है कि ईश्वर अजर है, अमर है, अभय है इत्यादि तो इससे उसके भीतर भी निर्गुणता आती है। निमित्त से ही क्यों न हो, अजर, अमर, अभय हो जाया करता है। जब वह ईश्वर की सगुणता का चिंतन करता है कि ईश्वर सच्चिदानंद है, न्यायकारी है, दयालु है, इत्यादि तो उसके भीतर नैमित्तिक रीति से ही क्यों न हो, सच्चिदानंद आदि गुणों का संयोग संबंधवत्ï समावेश हो जाया करता है और इस प्रकार मनुष्य को मोक्ष के दोनों पहलू प्राप्त हो जाते हैं।