भौतिक क्षेत्र का ध्येय एक ऐसा पदार्थ है, जिसका काल की दृष्टि से आदि और अंत होता है और उसका उद्देश्य किसी अन्य वस्तु को प्राप्त करना होता है। आध्यात्मिक साधना का ध्येय ऐसी वस्तु की प्राप्ति होता है, जो सदा रही है, सदा रहेगी और इस समय भी हमारे ही अंदर मौजूद है।
जीवन के आध्यात्मिक ध्येय को जीवन के भीतर ही ढूँढऩा चाहिए, जीवन के बाहर नहीं। इसलिए आध्यात्मिक क्षेत्र की साधना ऐसी होनी चाहिए कि वह हमारे जीवन को उस जीवन के अधिकाधिक निकट ले जाए, जिसे हम आध्यात्मिक समझते हैं।
आध्यात्मिक साधना का ध्येय किसी सीमित अभीष्ट की प्राप्ति करना नहीं होता, जो कुछ काल स्थिर रहकर फिर मिट जाए वरन् उसका उद्देश्य जीवन का ऐसा आमूल परिवर्तन होता है, जिससे कि वह सदा के लिए चिरस्थायी महान् सत्य को प्राप्त कर सके।
कोई साधना तभी सफल समझी जा सकती है, जब वह साधक के जीवन को ईश्वरीय उद्देश्य के अनुकूल बनाने में समर्थ होती है और वह उद्देश्य होता है, जीवमात्र को ब्रह्मभाव की आनंदमय अनुभूति कराना। हमारा कत्र्तव्य है कि हम अपने साधन को इस ध्येय के स्वरूप के सर्वथा अनुकूल बनाएँ। इस प्रकार साधन और साध्य में जितना ही कम अंतर होता है, साधना उतनी ही पूर्ण होती है।