बुद्धिमत्ता, चतुरता, तत्परता, मधुरता और परिश्रमशीलता के सहारे मनुष्य उन्नति की ओर अग्रसर होता है। जिसमें ये गुण न हों, उसका सुख-साधन उपार्जित करने के लिए बहुत सफल हो पाना कठिन होता है। मूर्ख, मंदबुद्धि, फूहड़, आलसी, प्रमादी एवं कर्कश स्वभाव के लोगों की महत्त्वाकांक्षाएँ आमतौर से असफल ही रहती हैं। इन दुर्गुणों से बच कर उन्नतिशील स्वभाव बनाना मनुष्य के अपने हाथ में है। वह चाहे तो अभ्यास, विचारशक्ति और आत्मनिर्माण का सहारा लेकर अपने आप को सुधार सकता है और उन्नतिशील बनने का बहुत कुछ मार्ग साफ कर सकता है। अनेक प्रगतिशील लोगों ने इसी मार्ग का अवलंबन लिया है। उन्होंने अपने स्वभाव की दुर्बलताओं को एक-एक करके परखा है और बीन-बीन कर निकाला है।
यद्यपि यह कार्य काफी कठिन है। आत्मनिरीक्षण कर सकना और अपनी कमजोरियों को आप समझ लेना एवं उनसे लडऩे को तत्पर हो जाना, हर किसी के वश का काम नहीं है। मनस्वी और साहसी लोग ही यह सब कर सकते हैं। शेष लोग तो अपनी दुर्बलताओं को समझ ही नहीं पाते, कोई समझाए तो उसे मानने को तैयार नहीं होते हैं। अपनी कमजोरियों के कारण मिली असफलता को वे दूसरों के सिर पर थोप कर स्वयं निर्दोष बनना चाहते हैं।