लोग बुराई और भलाई के बारे में अपने अलग-अलग दृष्टिïकोण बनाते हैं और चाहते हैं कि सभी लोग उस ढंग पर चलें। एक दूसरे में दोष देखने का यही कारण है।
दूसरों के सबंध में बुरा कहने वाला मैं कौन हूँ? दूसरों पर बुरा होने का दोष मैं कैसे मढ़ सकता हूँ, जब मैं स्वयं पाप से दूर नहीं हूँ। ऐ मेरे मन! दूसरों के दोष निकालने से पहले अपने आप को मिलनसार और निरभिमानी बना। दूसरों के दोष और बुराइयों को देखने से पूर्व अपनी बुराइयों और दोषों को देखो। कबीर ने बहुत सुंदर कहा है-बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझ सा बुरा न कोय॥ पवित्र हृदय वाला व्यक्ति दूसरों में बुराई देखना छोड़ देता है। दूसरों से घृणा करना, अपने आप को धोखा देना है। प्रेम करना, स्वयं को प्रकाश में लाना है। कोई भी व्यक्ति अपने आपको व दूसरों को ठीक प्रकार से तब तक नहीं समझ सकता, जब तक घृणा को त्याग कर प्रेम न करने लगे। जो व्यक्ति अपने ही मन को ग्रहण करने योग्य समझता है, वह उन्हीं व्यक्तियों से प्रेम करता है जो उसके विचारों के प्रतिकूल चलते हैं, उनसे वह घृणा करता है।
वास्तव में आगे बढऩे की कला को उसी ने समझा है, जिसने अपने हृदय को उपर्युक्त प्रकार से मोड़ लिया है।
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