मानव मात्र शांति चाहता है, चिरशांति, पर वह शांति है कहाँ? संसार में तो अशांति का ही साम्राज्य है। शांति के भंडार तो वही केवल शक्तिपुंज सर्वेश्वर भगवान् ही हैं। वे ही परम गति हैं और उनके पास पहुँचने के लिए सत्य हृदय से की गई प्रार्थना ही पंखस्वरूप है। उनके अक्षय भंडार से सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
प्रार्थना कीजिए। अपने हृदय को खोल कर कीजिए। चाहे जिस रूप में कीजिए, चाहे जहाँ एकांत में कीजिए, अपनी टूटी-फूटी लडख़ड़ाती भाषा में कीजिए, भगवान् सर्वज्ञ हैं। वे तुरंत ही आप की तोतली बोली को समझ लेंगे। प्रात: काल प्रार्थना कीजिए, मध्याह्नï में कीजिए, संध्या को कीजिए, सर्वत्र कीजिए और सभी अवस्थाओं में कीजिए। उचित तो यही है कि आप की प्रार्थना निरंतर होती रहे। यही नहीं आप का संपूर्ण जीवन प्रार्थना- मय बन जाए।
प्रभु से माँगिए कुछ नहीं। वे तो सबके माँ-बाप हैं। सबक ी आवश्यकताओं को वे खूब जानते हैं। आप तो दृढ़ता से उनके मंगलविधान को सर्वथा स्वीकार कर लीजिए। उनकी इच्छा के साथ आपनी इच्छा को जोडक़र एकरूप कर दीजिए। भगवान् की हाँ में हाँ मिलाते रहिए, तभी सच्ची शांति का अनुभव कर सकोगे।
जब कभी जो भी परिस्थिति अनुकूल अथवा प्रतिकूल आ जाए, भगवान को धन्यवाद दीजिए और हृदय से कहिए-‘प्रभो! मैं तो यही चाहता था।’