मानव जाति में से उदारता और भलमनसाहत का अंत अभी नहीं हुआ है। माना कि सज्जनता घट रही है, स्वार्थ बढ़ रहा है और लोग एक-दूसरे के सहायक न होकर ईष्र्या और शत्रुता का परिचय देने में अग्रणी रहते हैं, इतना होने पर भी अभी इस संसार में मानवता बहुत बाकी है और लाभ उन लोगों को सदा मिलता ही रहेगा, जो इसके अधिकारी हैं। आवश्यकता केवल इस बात की है कि हम अपने स्वभाव को ऐसा ढालें, जिससे दूसरों की सहानुभूति अनायास ही उपलब्ध हो सके। चालाक आदमी लच्छेदार बातें बनाकर एक बार किसी को ठग सकते हैं, पर बार-बार ऐसा कर सकना उनके लिए कदापि संभव न होगा।
मनुष्य में भले-बुरे की परख करने को विवेक मौजूद है और वह बदमाशों तथा बदमाशियों को देर तक पनपने नहीं दे सकता। चालाकी और बेईमानी से कमाई हो सकती है, यह बात उतनी देर के लिए ही ठीक है, जब तक कि भंडाफोड़ नहीं हो जाता और यह एक सनातन सत्य है कि बुराई या भलाई देर तक छिपी नहीं रहतीं।
भलाई का विस्तार मंदगति से होता है, पर बुराई तो अत्यंत द्रुतगति से आकाश-पाताल तक जा पहुँचती है। इसलिए आमतौर से चालाकी और बेईमानी के आधार पर चलने वाले काम कुछ ही दिन में नष्टï हो जाते हैं। उपभोक्ता और सहकर्मी ही उनके सबसे बड़े शत्रु बन जाते हैं।