आत्मा की पुष्टि तथा सूक्ष्म शरीर की पुष्टि केवल आत्मचिन्तन, विचार शुद्धि, भावनाओं की पवित्रता तथा भगवन्नाम के रस से ही होती है। इन साधनों की प्राप्ति के लिए न किसी धन की आवश्यकता है, न किसी विशेष कर्म की। यदि आवश्यकता है, तो केवल अपने ध्यान को अंतर्मुखी करने की, आत्मनिरीक्षण और अपने मन में भगवन्नाम की कामना उत्पन्न करने की।
यह उपर्युक्त साधन तभी प्राप्त होते हैं, जब उस परमपिता सच्चिदानंद भगवान् से सद्प्रेरणा मिलती है और सद्ïप्रेरणा को प्राप्त करने का अत्युत्तम और सुगम साधन है-भगवान् की प्रेरक शक्ति माँ गायत्री की शरण लेना। हर मानव यदि यह समझ ले कि इतने साधन मैंने इस भौतिक शरीर की पुष्टि के लिए एकत्रित किए हैं, यदि एक साधन अर्थात्ï गायत्री माता की शरण, अपने आंतरिक शरीर के लिए भी कर लूँ, तो भगवती माँ, उस परमपिता परमात्मा की प्रेरणा शक्ति, मानव को स्वयमेव अंधकार से निकाल देती है और नि:स्वार्थ कर देती है, जिससे आंतरिक जीवन स्वयमेव पुष्टि पाने लगता है और यह भौतिक शरीर तथा बाह्य जीवन (सांसारिक, व्यावहारिक) भी पुष्टि पाते हैं।
गायत्री उपासना प्रत्यक्ष तपश्चर्या है। इससे तुरंत आत्मबल बढ़ता है। गायत्री साधना एक बहुमूल्य दिव्य संपत्ति है। इस संपत्ति को इक_ी करके साधक उसके बदले में सांसारिक सुख एवं आत्मिक आनंद भली प्रकार प्राप्त कर सकता है।