संसार में तीन प्रकार के मनुष्य होते हैं। पहली श्रेणी के श्रेष्ठï पुरुष वे होते हैं, जो अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को तिलांजलि देकर निरंतर प्राणिमात्र के कल्याण में लगे रहते हैं अर्थात् अपने स्वार्थ को दूसरोके स्वार्थ के साथ मिला देते हैं। दूसरी श्रेणी के पुरुष वे होते हैं, जो अपनी व्यक्तिगत पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन जुटाने के साथ-साथ समाज कल्याण के परोपकारी कार्यों में लगे रहते हैं। तीसरी श्रेणी के नीच पुरुष वे होते हैं, जो अपने स्वार्थों के लिए दूसरोका गला घोटते हैं और झूठ, छल, कपट, बेईमानी, घूस आदि घृणित कार्यों को अपनाने में संकोच नहीं करते। वे दूसरोके हानि-लाभ पर कोई ध्यान नहीं देते। अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए वे नीच से नीच कार्य करने पर उतारू हो सकते हैं। विवेक बुद्धि को भटटी में झोक कर सांसारिक उन्नति करना उनका जीवन-लक्ष्य होता है। ऐसे मनुष्य पशु की श्रेणी में गिने जाते हैं।
मनुष्य तो वह है, जो मनुष्य के लिए जीता है। जो केवल अपने लिए जीता है, अपने लिए सोचता है, केवल अपने लिए पकाता है, वह पशु है, चोर है, मनुष्य कहलाने योग्य नहीं।
पशुता से मनुष्यता व देवत्व की ओर बढऩे की पहचान यही है कि उसने कहाँ तक अपने स्वार्थों को समाज के स्वार्थों के साथ मिला दिया है।
मनुष्य जीवन की सार्थकता इसी में है कि वह व्यक्तिगत उन्नति के साथ-साथ दूसरोकी उन्नति के लिए भी जीवन भर प्रयत्न करता