मनुष्यता की उच्च मंजिल पर पहुँचने के लिए आवश्यक साधन है, उलझन रहित कर्म करना, अपनी शक्ति एवं परिश्रम को व्यर्थ के कार्यों में खर्च न करके व्यवस्थित ढंग से सत्कार्यों एवं अपने लक्ष्य की ओर बढऩे में लगाना। अक्सर मनुष्य अपने समय और शक्ति का तथा कार्य का व्यवस्थित रूप नहीं बना पाते और व्यर्थ के उलझन भरे कार्यों में इन्हें नष्ट कर देते हैं। फलत: जीवन के अंत तक भी पूर्ण मनुष्य नहीं बन पाते हैं। इतना ही नहीं, उनका जीवन भार रूप बन जाता है, अत: उलझन भरे कार्यों से बचना चाहिए, क्योंकि इनमें व्यर्थ शक्ति और समय नष्टï होता है।
अपनी सामथ्र्य एवं स्थिति को ध्यान में रखते हुए, उसी के अनुसार सफलता की ओर अग्रसर होने के लिए, क्रम से कदम बढ़ाने चाहिए। इससे शक्ति और समय का दुरुपयोग नहीं होता। कई महापुरुष अकेले होते हुए भी चुपके-चुपके महान् कार् यों, महान योजनाओं को कार्यान्वित करते हैं, जिन्हें अचानक देखकर जनता चमत्कार समझ लेती है। अत: सदैव उलझन भरे कर्मों से बचकर अपनी शक्ति, सामथ्र्य एवं स्वरूप का सदुपयोग अपने पवित्र पथ की ओर अग्रसर होने में करना, पूर्ण मनुष्य बनने के लिए आवश्यक साधन हैं।