ज्ञानयोग की एक सुलभ साधना

 दुनिया में लक्ष्मी, विद्या, प्रतिष्ठI, बल, पद, मैत्री, कीर्ति, भोग, ऐश्वर्य आदि को बड़ा फल माना जाता है। यह सब ज्ञान-रूपी वृक्ष के फल हैं। ज्ञान के अभाव में इनमें से एक भी वस्तु प्राप्त नहीं हो सकती। परमार्थ के लिए ज्ञान से बड़ी और कोई वस्तु नहीं है। भूखे को दो रोज भोजन करा देने से सदा के लिए उसका भला नहीं होगा। उसे कोई ऐसी राह दिखानी होगी, जिस पर चलकर वह स्वयं जीविका-उपार्जन कर सके। बीमारी दवा से अच्छी भी हो जाए, तो भी नीरोगता के लिए स्वास्थ्य-संबंधी ज्ञान आवश्यक है। दवा के आधार पर सदा के लिए किसी का रोग नहीं जा सकता, पर ज्ञान के आधार पर बिना दवा के भी रोग अच्छा हो सकता है। चिंता, तृष्णा, लोलुपता, कामुकता, उद्वेग, क्रोध, शोक, घबराहट, निराशा सरीखी भयंकर मानसिक अशांतियाँ जो जीवन को भाररूप और नारकीय बनाए रहती हैं, ज्ञान द्वारा ही शांत हो सकती हैं। तीनों लोकों की संपदा मिलने से भी उपरोक्त अग्रियाँ बुझ नहीं सकतीं, बल्कि और उलटी बढ़ती ही हैं। उन्हें बुझाने वाला एकमात्र पदार्थ ज्ञान ही है। सांसारिक और पारलौकिक शांति की कुंजी ज्ञान ही है। तुच्छ मनुष्य इसी के बल से महापुरुष और महात्मा बनते हैं। दूसरों की सेवा-सहायता करने वाली इससे बड़ी और कोई वस्तु नहीं।