आध्यात्मिक साधनाओं का मूल उद्देश्य आत्मनिर्माण है। जीवन की सारी समस्याओं का उलझना-सुलझना बहुत करके मनुष्य की आंतरिक स्थिति पर निर्भर रहता है। यों कभी-कभी कठिन प्रारब्धभोग भी मार्ग में विघ्रबाधा बनकर अड़ जाते हैं और हटते-हटते बहुत परेशान कर लेते हैं, पर आमतौर से जीवन की गतिविधि व्यक्ति की अपनी निजी मनोभूमि पर आधारित रहती है।
धार्मिकता और आस्तिकता का अंत:करण में प्रवेश होने से उन आदर्शों के प्रति निष्ठा बढ़ सकती है, जो व्यक्ति की पाशविक दुष्प्रवृत्तियों का समाधान और दैवी सत्प्रवृत्तियों का उत्थान कर सकें। यही साधना है। साधना, मानव जीवन की प्रत्येक गुत्थी को सुलझाने वाली, प्रत्येक कठिनाई का समाधान करने वाली मानी जाती है। यह मान्यता असत्य नहीं है। आत्मा पर छाए हुए मल विक्षेपों को जो साधना हटा सकती है, उसी से सुख-शांति की प्रगति और उन्नति भी मिल सकती है। आत्म-निर्माण की वैज्ञानिक विधि-व्यवस्था ही साधना के नाम से पुकारी जाती है। आत्म-निर्माण का कार्य किसी विशाल कार्यालय या कारखाने के निर्माण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस महान्ï कार्य को संपन्न करने वाली पद्धति, साधना की महानता स्वल्प नहीं महान् ही है।