अहंकार का नाश करने के लिए परमात्मा सदा प्रयत्न करते रहते हैं, क्योंकि यही दुर्गुण भव-बंधनों में जीव को बाँधे रहने में सबसे कड़ी लौह शृंखला का काम करता है। अहंकार को ही असुरता का प्रतीक माना गया है। अहंकारी की महत्त्वाकांक्षाएँ संसार के लिए एक विपत्ति ही सिद्ध होती हैं।
सिकंदर, तैमूरलंग, नादिरशाह, औरंगजेब, नेपोलियन आदि के अहंकार ने कितनी निरीह जनता को संत्रस्त किया, इसका रोमांचकारी चित्र इतिहास के हर विद्यार्थी को याद है। अहंकार का मार्ग हर मनुष्य को इसी दिशा में ले जाता है। जितनी उसकी क्षमता और परिस्थिति होती है, उसी अनुपात से वह विपत्ति का कारण बनता जाता है।
सफलताएँ प्राप्त करने का हम प्रयत्न करें, पर यह न भूलें कि उसके साथ फूल में काँटे की तरह जो अहंकार छिपा रहता है, उसका आक्रमण अपने ऊपर न हो जाए।
हर सफलता के लिए हमें अपने सहयोगियों और मार्गदर्शकों का कृतज्ञ होना चाहिए तथा ईश्वर को सच्चे हृदय से धन्यवाद देना चाहिए कि उसकी अनुकंपा से ही इतना श्रेय प्राप्त हो सकना संभव हुआ, किंतु तुच्छताओं को भी भूल न जाना चाहिए। एक ही झटके में जब बड़े-बड़े किले चूर-चूर हो जाते हैं, तो बेचारे तुच्छ मनुष्य की बिसात ही कितनी है। मनुष्य को अपनी महानता याद रखनी चाहिए।