अशांत रहने से क्या लाभ?

मानसिक शांति ऐसी  बहुमूल्य खुराक है, जिसे प्राप्त करने पर गरीब  आदमी भी बड़े आनंद और प्रसन्नतापूर्वक जीवनयापन करते हैं। श्रम अधिक करना पड़े, भोजन घटिया मिले या अन्य शारीरिक असुविधाएँ रहें, तो भी मानसिक शांति मिलने की दशा में मनुष्य सुखी ही रहेगा, पर सब सुख-साधन रहते हुए भी यदि आंतरिक चिंता और परेशानी से मन व्यथित रहता है, तो वह अपने को नरक में पड़ा हुआ ही अनुभव करेगा। इसलिए जीवन का आनंद-लाभ करने के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति  को यह प्रयत्न करना चाहिए कि वह अपनी मानसिक अशांति के कारणों की तलाश करे और उनसे छुटकारा पाने के लिए जितनी जल्दी संभव हो सके, कदम उठाए। अन्य अभावों और कठिनाइयों के रहने से कुछ विशेष हानि  नहीं है, पर चित्त का उद्विग्र रहना, एक भारी विपत्ति है। इससे जीवन का सारा आनंद ही नष्टï हो जाता है।

यदि अशांति का कारण कोई परिस्थितियाँ हैं, तो बदलना चाहिए और यदि अपनी आदत ही ऐसी बन गई है कि जरा-सी बात पर जी घबराने लगे, भय का पहाड़ सामने उपस्थित दिखाई दे, तो इस दुर्बलता को भी परास्त करना पड़ेगा। उपाय जो भी करना पड़े, परिणाम यही प्राप्त करना चाहिए कि मन की अशांति दूर हो, चित्त में बेचैनी न रहे। जीवन क्रम को और अधिक समृद्ध-उन्नतिशील बनाया जा सकता हो, तो ठीक है, वैसा करना चाहिए। कोई सफलता इतनी कीमती नहीं है कि उससे आंतरिक अशांति के द्वारा होने वाली क्षति की पूर्ति की जा सके।