जीवन एक प्रकार का संग्राम है। इसमें घड़ी-घड़ी में विपरीत परिस्थितियों से, कठिनाइयों से, लडऩा पड़ता है। मनुष्य को अपरिमित विरोधी-तत्त्वों को पार करते हुए अपनी यात्रा जारी रखनी होती है। दृष्टि उठाकर जिधर भी देखिए, उधर ही शत्रुओं से जीवन घिरा हुआ प्रतीत होगा। ‘दुर्बल, सबलों का आहेार है’ यह एक ऐसा कड़वा सत्य है, जिसे लाचार होकर स्वीकार करना ही पड़ता है। छोटी मछली को बड़ी मछली खा जाती है। बड़े वृक्ष अपना पेट भरने के लिए आस-पास के असंख्य छोटे-छोटे पौधों की खुराक झपट लेते हैं और वे बेचारे छोटे पौधे मृत्यु के मुख में चले जाते हैं। छोटे कीड़ों को चिडिय़ाँ खा जाती हैं और उन चिडिय़ों को बाज आदि बड़ी चिडिय़ाँ मार कर खाती हैं। गरीब लोग अमीरों द्वारा, दुर्बल बलवानों द्वारा सताए जाते हैं। इन सब बातों पर विचार करते हुए हमें इस निर्णय पर पहुँचना होता है कि यदि सबलों का शिकार बनने से, उनके द्वारा नष्ट किए जाने से, अपने को बचाना है, तो अपनी दुर्बलता को हटाकर इतनी शक्ति तो कम से कम अवश्य ही संचय करनी चाहिए कि चाहे जो कोई यों ही चट न कर जाए।
सांसारिक जीवन में प्रवेश करते हुए यह बात भली प्रकार समझ लेनी चाहिए और समझ कर गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि केवल जागरूक और बलवान व्यक्ति ही इस दुनिया में आनंदमय जीवन के अधिकारी हैं।
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