स्थिति की समीक्षा
भारत विश्व का सबसे बड़ा प्रजातंत्र है। अंदर से उभरी और बाहर से थोपी गई तमाम विसंगतियों के बीच भारत ने अपनी प्रजातंात्रिक पद्धति को टूटने नहीं दिया और अनेक कीर्तिमान बनाए, इसके लिए उसे वह सम्मान भी प्राप्त हुआ है, जिसका कि वह हकदार है।
किन्तु इन सबके बावजूद कुछ ऐसी चूकें हुई हैं, जिनके कारण हमारी प्रजा को पीडि़त और तंत्र को लज्जित भी होना पड़ा है। वह है मानवीय संस्कृति मूल्यों और आदर्शों की उपेक्षा। इसके कारण भारत की भोली और मेहनतकस प्रजा की श्रमशक्ति और धनशक्ति का बड़ा भाग स्वार्थ की आपाधापी और भ्रष्टïाचार की भेंट चढ़ा जा रहा है।
इसके लिए शासक वर्ग-राजनीतिज्ञों तथा प्रशासनिक अधिकारियों को दोष दिया जाता है। एक हद तक सही भी है, किन्तु ध्यान रहे कि प्रजातंत्र में ये सब प्रजा के द्वारा चुने हुए या नियुक्त कर्मचारी भर हैं। असली मालिक तो प्रजा है। लेकिन जहाँ मालिक जागरूक न हो, वहाँ कर्मचारियों को स्वच्छन्द होते कितनी देर लगती है? स्थिति सुधारने के लिए जहाँ कर्मचारियों को कसा जाना जरूरी है, वहीं मालिकों को भी अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और कत्र्तव्यों में कुशल बनाना जरूरी है।
युगऋषि ने सत्तर के दशक में ही इन तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए दो आलेख लिखे थे- १. मालिकों को जगाओ, प्रजातंत्र बचाओ, तथा २. जनता के सुप्रीम कोर्ट में समस्याओं के समाधान की गुहार। उक्त दोनों आलेखों के सार संक्षेप और महत्त्वपूर्ण अंशों को इस पत्रक में दिया जा रहा है। इससे युग निर्माण के परिजनों तथा राष्टï्रीय उत्कर्ष के लिए प्रयासरत संगठनों, समाजसेवियों, नागरिकों को क्या करना है?, क्यों करना है?, और कैसे करना है? की दिशा में सार्थक मार्गदर्शन प्राप्त हो सकेगा।
पाँच मूर्धन्य वर्ग – किसी भी समाज की व्यवस्था के सुयोग्य संचालन में युगऋषि ने पाँच मूर्धन्य वर्गों का जिक्र किया है। वे लिखते हैं- ‘जैसे पाँच इन्द्रियाँ किसी व्यक्ति की सभी क्रियाओं का संचालन करती हैं, उसी प्रकार समाज की महत्त्वपूर्ण विधि व्यवस्था का संचालन क्रमश: पुरोहित, शासक, मनीषी, कलाकार तथा श्रीमंत वर्ग के लोग करते हैं।Ó इनके कत्र्तव्यों का उल्लेख उन्होंने इस प्रकार किया है-
१. पुरोहित वर्ग- इनका कार्य प्रजा के उच्च आदर्शों, आध्यात्मिक नैतिक मूल्यों की स्थापना करना होता है।
२. शासक वर्ग- सुरक्षा एवं व्यवस्था इसके मूल कत्र्तव्य हैं। आजकल इस वर्ग के पास बहुत शक्तियाँ पहुँच गई हैं। साधनों तथा प्रतिभाओं को नियोजित करने का केन्द्रीकरण इसी वर्ग के पास हो गया है।
३. मनीषी वर्ग- विचारक, चिंतक, साहित्यकार इसी वर्ग में आते हैं। ये जीवन में श्रेष्ठï परिभाषाओं को स्थापित करने का, जन-जन में आदर्शों के प्रति उत्साह जगाने का कार्य कर सकते हैं।
४. कलाकार वर्ग- विभिन्न कलाओं से श्रेष्ठï मनोरंजन तथा हँसते-हँसाते उच्च भावनाओं का संचार यह वर्ग कर सकता है।
५. श्रीमंत वर्ग- इनका मुख्य कार्य आवश्यकता के अनुरूप उत्पादन एवं वितरण की व्यवस्था बनाना है। आज तो इनकी एक अलग पहचान बन गयी है। वे तो सम्पदा के बल पर भगवान को भी खरीदने का दावा करते हैं। शासक, पुरोहित मनीषी एवं कलाकार वर्ग को तो क्रीतदासों की तरह जेब में रखने की बातें किया करते हैं।
मानवता की फरियाद-
मानवीय आदर्शों की उपेक्षा देखकर मानवता ने पहले इन्हीं के दरबार में अपील की। लेकिन चूँकि उनमें अधिकांश भटकी हुई प्रतिभाओं में शामिल हैं, इसलिए सही समाधान की दिशा में कोई सार्थक पहल नहीं की जा सकी। युगऋषि ने इन्हें पाँच अदालतों की उपमा देते हुए लिखा है- ‘मानवीय गरिमा, सुरक्षा, स्थिरता और प्रगति के लिए उक्त पाँचों अदालतों में फरियाद कर चुकी है। सभी ने मौखिक सहानुभूति तो दिखाई, किन्तु कोई कारगर सहायता करने से इंकार स्तर की विवशता व्यक्त कर दी है। एक ने दूसरे को दोषी और अपने को निर्दोष ठहराया है।
‘मानवीय गरिमा ने उपरोक्त पाँच छोटी अदालतों से निराश होकर अब जनता के सुप्रीम कोर्ट में अपनी फरियाद पेश की है। जाग्रत जन शक्ति की गरिमा असीम है। उसकी तुलना संसार और किसी सामथ्र्य से नहीं हो सकती। सरकारें उसी के दिए टैक्स पर चलती हैं। श्रीमंतों को धनी बनाने में उसी का श्रम छन-छन कर तिजोरियों तक पहुँचता है। साहित्यकार उसी की खरीद पर जेबें भरते हैं। कलाकार उसी को रिझाकर कंधे उचकाते हैं। पुरोहितों की दान दक्षिणा का दूध इसी गाय के थनों से निचोड़कर उपलब्ध होता है। अपराधी उसी को नोंच-खसोटकर अपना काम चलाते हैं।….. पदार्थों की शक्ति प्रकृति के अंतराल में छिपी पड़ी है। परब्रह्मï की सत्ता और महत्ता का प्रत्यक्ष दर्शन और मूल्यांकन करना हो, तो उसे मनुष्य समुदाय के पराक्रम में सन्निहित देखा जा सकता है।
युगऋषि के अनुसार मानवता की फरियाद रंग लाने लगी है। जागरूक जनमत अब दुष्प्रवृत्तियों के उन्मूलन और सत्प्रवृत्तियों के संवर्धन के लिए आतुर हो उठा है। लेकिन उन्हें अभी अनेक संदर्भों में जागरूक एवं प्रशिक्षित करना जरूरी है।
मालिक जागें- युगऋषि ने प्रजातंत्र की मालिक प्रजा को जागरूक बनाने के लिए कुछ सूत्र इस प्रकार दिए हैं-
* मालिकों-मतदाताओं को यह जानना चाहिए कि अपने कर्मचारी कैसे रखने हैं, और नियुक्ति के पूर्व उनकी जाँच पड़ताल कैसी की जाए? झाँसे में आकर वोट न देने की दृढ़ता भी होनी चाहिए।
* नियुक्त कर्मचारियों के कार्य पर कड़ी निगाह रखने तथा भूल होने पर उन्हें समुचित दण्ड देने की कारगर व्यवस्था होनी चाहिए। इन दिनों इस हेतु सरकारी तथा लोकसेवी प्रतिनिधियों द्वारा कुछ ऐसे मजबूत नियम बनाने के प्रयास चल भी रहे हैं।
* यह तो शुरुआत है। आगे तो चुनाव पद्धति को ऐसा रूप देना पड़ेगा कि जनता बिना खर्चे के भी उचित प्रतिनिधि को जिता सके। इसी के साथ जनता को विश्वास दिलाकर चुनाव जीतने के बाद विश्वास तोडऩे पर उन्हें वापिस बुलाने की कारगर रीति-नीति भी बनानी होगी।
* समाज में कुछ ऐसे निष्पृह लोकसेवी नेता जाग्रत् करने होंगे, जो चुनाव न लड़ें, किन्तु उनके मार्गदर्शन में जनता सही प्रतिनिधियों का चयन कर सके। जिन्हें समाज में साधन तो क्या, प्रतिष्ठा पाने की भी इच्छा न हो। समाज का विश्वास जीतने वाले ऐसे जनप्रतिनिधियों को राजनैतिक जनप्रतिनिधियों से कम महत्त्व नहीं दिया जाना चाहिए।
प्रजातंत्र की मालिक प्रजा को जाग्रत् करने के लिए हर संभव उपाय किए जाने हैं।