यदि मनुष्य अपनी पाशविक वृत्तियों पर नियंत्रण न करे, उन्हें यों ही उच्छृंखलतापूर्वक पनपने दे, तो उसकी स्थिति शरीरधारी नरपिशाच जैसी हो जाती है।
सर्प को चाहे भूल में ही अनजाने में ही किसी ने छेड़ दिया है, पर वह अपने को थोड़ा सा आघात लगने मात्र से इतना क्रुद्ध एवं उत्तेजित हो जाता है कि सामने वाले की जान लेकर ही पीछा छोड़ता है। कहते हैं कि सिंह, बाघ आदि हिंस्र पशु केवल इतनी-सी बात पर क्रुद्ध हो जाते हैं कि उनकी आँख से आँख कैसे मिलाई? नीची आँख करके कोई उनके सामने से भले ही निकल जाए, पर आंखों की तरफ देखने लगे, तो उसे वे अपना अपमान मानते हैं और इतनी- बात पर आक्रमण करके सामने वाले की बोटी-बोटी नोंच डालते हैं। लोग बताते हैं कि पिशाच भी ऐसे ही असहिष्णु होते हैं। उनके पीपल, मरघट के नीचे होकर गुजर जाए या कोई ऐसा काम कर बैठे, जिसे वे पसंद नहीं करते हों, तो अपनी नापसंदगी का बदला वे सामने वाले की जान लेकर ही चुकाते हैं।
सर्प, बाघ और पिशाच मनुष्य-योनि में नहीं माने जाते, पर मनुष्यों में भी अगणित ऐसे देखे जाते हैं, जिन्होंने अपनी दुष्प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करना नहीं सीखा और फलस्वरूप असहिष्णुता की उत्तेजना में ऐसे काम करने लगते हैं, जो मनुष्यता को लज्जित करतें हैं।